सिन्धु घाटी सभ्यता- भाग 1
अब तक विश्व की 4 सभ्यताऍं प्रकाश में आई है जो क्रमश:-
सभ्यता नाम |
नदी |
1. मेसोपोटामिया |
दजला व फराज |
2. मिस्त्र |
नील |
3. भारत |
सिन्धु |
4. चीन |
ह्वांग-हो (पीली नदी) |
- सैन्धव सभ्यता की लिपि – भावचित्रात्मक लिपि
- सर्पिलाकार लिपि
- गोमूत्री लिपि
- ब्रस्टोफेअन/फेदस/फेदम
सिन्धु घाटी सभ्यता की लिपि को सर्वप्रथम पढ़ने का प्रयास ‘वेडेन महोदय’ ने किया था। इस लिपि को पढ़ने वाले प्रथम भारतीय व्यक्ति ‘नटवर झा’ थे, परन्तु पढ़ने में असफल रहे।
- इस लिपि में 64 मूल चिन्ह हैं जबकि 250-400 तक चित्राक्षर हैं।
- सर्वाधिक चित्राक्षर उल्टे यू Π के आधार के है।
- लिपि के साक्ष्य हड़प्पा के कब्रिस्तान H से मिलते हैं।
सिन्धु का अतीत -
- सर्वप्रथम 1826 ई. में चार्ल्स मैसन ने (1842) में प्रकाशित एक लेख के द्वारा भारत में एक प्राचीनतम नगर हड़प्पा के होने की बात कही।
- 1834 ई. बर्नेश ने किसी नदी के किनारे ध्वस्त किले के होने की बात कही।
- 1851-53 ई. में अलेक्जेण्डर कनिंघम ने हड़प्पा के टिले का सर्वेक्षण किया।
- 1856 ई. में पहली बार A. कनिंघम ने हड़प्पा का मानचित्र जारी किया था।
सिन्धु घाटी सभ्यता
भाग – 2
- 1856 ई. में कराची से लाहौर रेलवे लाईन बिछाते समय जॅान बर्टन व विलियम बर्टन के आदेशों से पहली बार हड़प्पा के टीले से कुछ ईंटे निकाली गई।
NOTE- इस समय भारत के गर्वनर जनरल लार्ड डलहौजी थे। डलहौजी को भारत में रेलवे का जनक कहा जाता है। भारत में पहली बार रेल 16 अप्रैल, 1853 को बम्बई से थाणे के मध्य 33 किमी. (लगभग) चलाई गई। |
- 1861 ई. में अलेक्जेण्डर कनिंघम ने भारतीय पुरातत्व विभाग की स्थापना की, अत: इन्हें भारतीय पुरातत्व का जनक कहा जाता है।
- 1881 ई. में एक बार पुन: एलेक्जेण्डर कनिंघम हड़प्पा के टीले पर गए तथा वहाँ से कुछ मोहरें प्राप्त की।
- 1899-1905 के दौरान लार्ड कर्जन भारत में G.G. & वायसराय बनकर आए तथा इन्होने 1904 में भारतीय पुरातत्व एवं सर्वेक्षण विभाग की स्थापना की तथा भारत में प्राचीन इमारतों व नगरों के संरक्षण व सर्वेक्षण का आदेश पारित किया।
- इसी के शासनकाल में जॉन मार्शल नए निदेशक के रूप में भारत आए और उन्होनें 5 सदस्यों की एक कमेटी बनाई-
- इन सभी लोगों को भारत में प्राचीन नगर व सभ्यता का पता लगाने का आदेश दिया गया।
- 1921 ई. में रायबहादुर दयाराम साहनी ने हड़प्पा के टीले की खोज की।
- 1922 ई. में राखालदास बनर्जी ने मोहनजोदड़ो की खोज की।
इसी प्रकार हड़प्पा सभ्यता लोगों के सामने आई।
सिन्धु घाटी सभ्यता
भाग – 3
विस्तार :-
आकार – पहले [Δ] त्रिभुजाकार
- वर्तमान में नवीन स्थल प्रकाश में आने के कारण अब इसका आकार – विषमकोणीय चतुर्भुज
- क्षेत्रफल – 1299600 वर्ग किलोमीटर
- वर्तमान में – लगभग 16 लाख वर्ग किलोमीटर
क्षेत्र |
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स्थल (ट्रिक) |
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अफगान |
मुशो |
जी अफगान गए |
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मुण्डीगौक |
शौर्तगौई |
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ब्लूचिस्तान |
मेरा |
सुबह |
का |
कुल्ला |
ब्लू. में डाबर से |
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मेहरगढ़ |
रानाघुड़ई |
सुत्कांगेडोर |
बालाकोट |
क्वेटाघाटी |
कुल्ली |
डाबरकोट |
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सिंधप्रान्त (पाकिस्तान) |
अली |
मोहन |
आ |
कोट |
पहनकर जा |
चन्हुदडो |
जा |
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अलीमुराद |
मोहनजोदडो |
आमरी |
कोटिदजी |
|
चन्हुदडो |
|
||||
पंजाब प्रान्त (पाकिस्तान) |
रहमान |
को जलील |
करा तो उसने हड़प्पा |
जाकर |
स्माइल करी |
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रहमानटेरी |
जलीलपुर |
हड़प्पा |
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डेरास्माइल खाँन |
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पंजाब प्रान्त (भारत) |
रो |
स |
आया |
चक दे फट्टे |
बाड़े में
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रोपड़ |
संघोल |
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चक 86 |
बाड़ा |
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हरियाण |
कुनाल ने |
मीठी |
राब |
बनाई |
भर्राया |
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कुनाल |
मिथाथल |
राखीगढ़ी |
बनावली |
भर्राना |
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राजस्थान |
लोग |
बाँ |
का |
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बालाथल |
कालीबंगा |
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उत्तर प्रदेश |
आ |
ब |
हु |
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आलमगीरपुर |
बडगाँव |
हुलास |
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गुजरात |
लो |
धौला |
रंग |
रो |
प्रभाव |
गुजरात |
सु |
दे खो |
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लोथल |
धौलावीरा |
रंगपुर |
रोजदी |
प्रभासपतन |
भगवतराव |
सुरकोटड़ा |
देशलपुर |
- सिन्धु सभ्यता के नवीनतम स्थल - थार का मरूस्थल – वैंगीकोट व गुजरात में करीमशाही खोजे गये है।
सिन्धु घाटी सभ्यता
भाग – 4
- सिन्धु घाटी सभ्यता में पाई जाने वाली प्रजातियाँ/निर्माता-
1. सिन्धु घाटी सभ्यता एक नगरीय सभ्यता थी जिसे कॉस्ययुगीन सभ्यता माना जाता है।
- सैन्धव सभ्यता में निम्न प्रजातियाँ निवास करती थी -
प्र – प्रोटोआस्ट्रेलियाइड
भु – भुमध्यसागरीय (द्रविड़)- सर्वाधिक साक्ष्य मिले हैं अत: इन्हें सैन्धव सभ्यता का निर्माता माना जाता है।
से अल्प – अल्पाइन
मांगो- मंगोलियन
- नामकरण– इस सभ्यता के 3 नाम प्रयुक्त किए जाते हैं:
1. सिन्धु सभ्यता- जॉन मार्शल ने दिया।
2. सिन्धु घाटी सभ्यता- डॉ. रफिक मुगल ने दिया।
3. हड़प्पा सभ्यता- वर्तमान प्रचलित नाम।
NOTE:- सर्वप्रथम सिन्धु सभ्यता नाम का प्रयोग सर जॉन मार्शल ने किया। उन्होंने 1932 ई. में एक साप्ताहिक समाचार पत्र “द लंदन विकली” में इसे प्रकाशित करवाया। जबकि उन्होंने यह नाम सर्वप्रथम 1924 ई. में प्रयोग में लिया।
- जॉन मार्शल सिन्धु घाटी सभ्यता के निदेशक थे।
- काल:
1. जॉन मार्शल – 3250 ई.पू. – 2750 ई.पू.
2. रेडियो कार्बन पद्धति-
C14 के अनुसार – 2350 ई.पू.- 1750 ई.पू./ 2300 ई.पू.- 1700 ई.पू.
इस पद्धति के समर्थनकर्ता – डॉ. रोमिला थापर और D.P. अग्रवाल, जिन्होंने सैंधव सभ्यता का यही कालक्रम बताया है।
- रेडियो कार्बन पद्धति:
- खोज - बिलियर्डस F.Libbi के द्वारा संसार की प्रत्येक वस्तु में कार्बन के 2 अणु C12 व C14 पाये जाते हैं, जबतक यह सजीव अवस्था में होते हैं, तब तक उनमें इन दोनों अणुओं की मात्रा समान रहती है, परन्तु जैसे ही कोई वस्तु मृत अवस्था में जाती है C14 की मात्रा में कमी होना प्रारंभ हो जाती है।
- लगभग 5730 वर्ष C14 की मात्रा घटकर आधी (½) रह जाती है।
- इसी आधार पर किसी भी वस्तु की आयु ज्ञात कर ली जाती है।
सिन्धु घाटी सभ्यता
भाग - 05
हड़प्पा –
1. दुर्ग टीला-
नोट – जौ की उत्तम किस्म की खेती के साक्ष्य बनावली (हरियाणा) से मिले हैं।
2. नगर टीला –
नोट – सम्पूर्ण सैन्धव सभ्यता में लोथल एकमात्र ऐसा स्थल था, जिसके घरों के दरवाजे मुख्य सड़क की ओर खुलते थे।
NOTE- हड़प्पा का अन्नागार सम्पूर्ण सैन्धव सभ्यता की दूसरी सबसे बड़ी ईमारत मानी जाती है। जबकि लोथल से प्राप्त गोदीवाड़ा (बन्दरगाह) सम्पूर्ण सैन्धव स भ्यता की सबसे बड़ी इमारत थी।
सिन्धु घाटी सभ्यता
भाग - 06
अन्य अवशेष-
सर्वाधिक मोहरे- मोहन-जो-दडो
यह 3 प्रकार की होती थी-
1. आयताकार 2. वृत्ताकार 3. वृगाकार (सर्वाधिक)
शाब्दिक अर्थ -
जिसके 7 क्रमिक स्तर मिले है। (यहाँ से मिट्टी की गाढ़ मिली है)
सिन्धु घाटी सभ्यता
भाग - 07
मोहनजोदड़ो से प्राप्त अन्य अवशेष:-
चन्हुदडो-
यहाँ से :-
सिन्धु घाटी सभ्यता
भाग - 08
लोथल-
कालीबंगा-
1. आंशिक शवादान
2. पूर्ण शवादान
3. दाह संस्कार
नोट-
सिन्धु घाटी सभ्यता
भाग - 09
बनावली/वनवाली
Imp- सम्पूर्ण सैन्धव सभ्यता का एकमात्र ऐसा स्थल जहाँ पर नाली व्यवस्था का अभाव पाया जाता है।
सुरकोटड़ा-
रोपड़-
साक्ष्य- मानव के साथ कुत्ते के शवादान के साक्ष्य प्राप्त हुए है।
नोट- सुरकोटड़ा सम्पूर्ण सैन्धव सभ्यता का एकमात्र ऐसा स्थल जो विनाश/पतन के साक्ष्य मिले है।
रोजदी-
सिन्धु घाटी सभ्यता
भाग - 10
धौलावीरा-
नोट-
राखीगढ़ी-
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य-
हाल ही में यहां हुए उत्खनन से कुछ मृदभाण्ड मिले है, जो कि लगभग 6-7 हजार ई.पू. पुराने माने जा रहे है, यदि ऐसा सही साबित हो जाता है, तो सैन्धव सभ्यता संसार की सबसे प्राचीनतम सभ्यता हो जाएगी।
सिन्धु घाटी सभ्यता
भाग - 11
आर्थिक जीवन -
क्र. |
आयातित वस्तुएँ |
स्थल का नाम |
1. |
सोना |
ईरान, अफगान, द. भारत (कर्नाटक) |
2. |
चाँदी |
ईरान, अफगान |
3. |
टीन |
ईरान, अफगान |
4. |
ताँबा |
खेतड़ी (झुँझुनूं, राज.) बलुचिस्तान |
5. |
सेलखड़ी(स्टेटाइड) |
राजस्थान, गुजरात, बलुचिस्तान |
6. |
नीलरत्न |
बदख्शा (अफगान) |
7. |
शंख व कौडीयां |
सौराष्ट्र (गुजरात) |
नोट – सिंधु घाटी सभ्यता के लोग घोड़े व सिंह से अपरिचित थे। तलवार से अपरिचित थे। संपूर्ण सैंधव सभ्यता में मंदिर के साक्ष्य नहीं मिले। यहाँ से केवल मृण्मूर्तियाँ ही मिलती है।
क्र. |
नगर |
नदी |
1. |
मोहन-जो-दड़ो |
सिंधु नदी |
2. |
चन्हुदडो |
|
3. |
कोटदिजी |
|
4. |
हड़प्पा |
रावी नदी |
5. |
रोपड़ |
सतलज |
6. |
बाड़ा |
|
7. |
कालीबंगा |
प्राचीन सरस्वती/घग्घर |
8. |
बनावली |
|
9. |
लोथल |
भोगवा नदी |
10. |
सुत्कांगेडोर |
दाश्क नदी |
11. |
रोजदी |
मादर नदी |
12. |
रंगपुर |
मादर नदी |
13. |
भग तराव |
नर्मदा नदी |
नोट - आर.एल. डायसन ने सुत्कांगेडोर को सैन्य चौकी बताया है।
सिन्धु की देन -
नोट - सैंधव समाज मातृसत्तात्मक था क्योंकि यहाँ से हमें केवल मातृ देवी की मृणमूर्तियाँ ही मिलती है। अत: सैंधव लोग मातृदेवी के उपासक थे।
सिंधु का पतन –