लोकनीति (Public Policy)
लोकनीति क्या है?
- सरकार द्वारा बनाई गई वह नीति जो लोक कल्याण के लिए कार्य करती है, लोक नीति कहलाती है।
- भारतीय संविधान के भाग-IV में यह स्पष्ट उल्लेख है कि सरकार/राज्य लोक कल्याण को ध्यान में रखकर नीतियाँ बनायेगी।
लोकनीति विशेषताएँ :-
- सरकार नीतियों के माध्यम से अपनी इच्छा को व्यावहारिक रूप देती है। नीतियों के माध्यम से हमें शासन व्यवस्था की पहचान होती है।
- लोकनीति की निम्नलिखित विशेषताएँ है-
- लोकनीति एक गतिशील प्रक्रिया है जो लोकनीति आवश्यकतानुसार परिवर्तित होती रहती है जैसी आवश्यकता होती है यह अपना स्वरूप बदल लेती है।
- लोकनीति लोकहित पर आधारित होती है। इसलिए सदैव लोकहित को ध्यान में रखकर बनायी जाती है। लोकनीति का उद्देश्य ही लोक कल्याण है।
- लोकनीति भविष्य उन्मुख होती है। लोकनीति वर्तमान की अपेक्षा भविष्य पर अधिक केन्द्रित होती है तथा भविष्य से जुड़े उद्देश्य को पूर्ण करती है।
- लोकनीति दिशा निर्देश रेखांकित करती है। लोकनीति दिशा-निर्देश देती है ताकि समस्त प्रशासन इन निर्देशों का पालन कर लोक कल्याण के उद्देश्य को पूरा करे।
- लोकनीति विभिन्न संगठनों सरकारी एवं गैर-सरकारी के सहयोग का परिणाम है। लोकनीति निर्माण में केवल सरकारी ही नहीं बल्कि गैर-सरकारी संगठन भागीदार होते हैं इन सभी के सम्मिलित सहयोग का परिणाम है लोकनीति है।
- लोकनीति परिणामोन्मुख होती है। लोकनीति सदैव इस तरह की बनायी जाती है जो परिणाम की पूर्ति करे।
नीति निर्माण पर प्रभाव
निम्नलिखित घटकों का प्रभाव नीति निर्माण पर देखा जा सकता है-
- विचारधारा :- जैसी विचारधारा के लोग सरकार में होते है वैसी ही विचारधारा का लोकनीति पर विचार दृष्टिगोचर होता है। भारत में अनेकों विचारधारा से जुड़े राजनीतिक दल हैं जो अपनी-अपनी विचारधारा के कार्यरत हैं लेकिन जब गठबंधन होता है तो वह कुछ कॉमन मुद्दों पर एकत्रित होकन नीतियां बनाने का प्रयास करते हैं।
- जनमत: जनमत का दबाव भी लोकनीति निर्माण में अपनी भूमिका अदा करता है। चाहे वह पर्यावरण का मुद्दा या अधिकार का मुद्दा या शोषण का मुद्दा हो आदि, नीति निर्माण में जनता की सक्रियता और प्रभाव तभी संभव होता है, जब जनता जागरूक है।
- सरकार की छवि : प्राय: सभी सरकारें जनता में अपनी छवि को लेकर सचेत रहती हैं। कई बार सरकार नीति को इस प्रकार बनती है कि उसकी छवि खराब न हो।
- बाहरी दबाव : सरकार की नीतियों पर बाहरी देशों का या अंतर्राष्ट्रीय दबाव भी कार्य करता है। जैसे 90 के दशक में निजीकरण एवं उदारीकरण आदि को लागू करने में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष एवं विश्व बैंक का दबाव था।
- अन्य कारक :- आपदा, मनोवैज्ञानिक, व्यक्तिगत आदि का प्रभाव भी नीतियों पर स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है।
लोकनीति निर्माण प्रक्रिया

नीति निर्माण प्रक्रिया के निम्नलिखित चरण है-
- समस्या को परिभाषित करना।
- विभिन्न विकल्पों का निर्माण करना।
- किसी एक ईष्टतम (व्यावहारिक) विकल्प का चयन करना अर्थात् वह विकल्प जो हमारे अनुसार बेहतर है लेकिन सर्वोतम नहीं।
- जो निर्णय लिया गया है उसका क्रियान्वयन करना।
- जब तक वह कार्य नीति पूर्ण नहीं हो जाती उसकी देख रेख करना।
- सफलता असफलता को मापना।
- सबक लेना और असफलता की विवेचना करना।
लोकनीति निर्माण का संगठन
- लोकनीति का निर्माण सरकार की सबसे महत्वपूर्ण गतिविधि है क्योंकि यह नागरिकों तथा संर्पूण राष्ट्र के जीवन के लगभग हरेक पक्ष को छूती है।
- नीति निर्माण की संरचना के अन्तर्गत समूची राजनीतिक व्यवस्था शामिल होती है।
लोकनीति निर्माण में दो प्रकार की संरचनाएँ प्रमुख रूप से भाग लेती हैं :-
1. सरकारी संरचना
- कार्यपालिका
- प्रशासन तंत्र
- विधायिका
- न्यायपालिका
2. गैर-स रकारी संरचना
- हित समूह
- राजनीतिक दल
- जनसंचार माध्यम
- सामाजिहक आन्दोलन
- अन्तर्राष्ट्रीय एजेंसी
भारत में नीति निर्धारण के अभिकरण
नीति निर्माण प्र क्रिया में मुख्य भूमिका अदा करने वाले कुछ प्रमुख अंग निम्नलिखित है :-
- संविधान :- भारत में संविधान नीतियों का मूलभूत स्रोत है। संविधान की प्रस्तावना और नीति निदेशक सिद्धांत प्रशासनिक नीतियों के प्रेरणा स्रोत रहे है।
- संसद:- सरकार की प्रमुख नीतियां संसद द्वारा स्वीकृत होती है। भारतीय संसद बजट, अनुदान, पूरक मांगे, प्रश्नकाल, राष्ट्रपति के अभिभाषण पर वाद-विवाद, आदि के माध्यम से नीति निर्माण में सक्रिय भूमिका अदा करती है।
- दबाव समूह :- दबाव समूह ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा सामान्य हित वाले व्यक्ति सार्वजनिक मामलों को प्रभावित करने कोशिश करते हैं। भारत में श्रमिक संघ, व्यवसायिक संघ, कृषक समुदाय, फेडरेशन ऑफ इंडियन, चैम्बर्स ऑफ कामर्स एडं इंडस्ट्री ऐसे ही दबाव गुट हैं जो नीति निर्माण को प्रभावित करते है।
- राजनीतिक दल :- विभिन्न राजनीतिक दल अपने चुनाव घोषणा पत्रों के माध्यम से अपनी नीतियों को जनता के सामने लाते हैं और उन पर अमल करने के नाम पर सत्ता प्राप्त करने का भी प्रयत्न करते हैं।
- मीडिया :- मीडिया नीतियों के निर्माण में प्रभावकारी भूमिका अदा करता है। मीडिया लोकमत का सृजन करने तथा प्रचलित नीतियों के अनुकूल कार्य करता है।
- परामर्शदात्री समितियों :- अनेक परामर्शदात्री समितियां नीति निर्माण में प्रमुख भूमिका अदा करती है। इन समितियों में आर्थिक समन्वय समिति, राजनीतिक मामलों की समिति, आयात-निर्यात मंत्रणा समिति, आदि प्रमुख हैं।
लोकनीति के प्रतिरूप (मॉडल)
1. संस्थावादी प्रतिरूप
- लोकनीति का निर्माण केवल सरकार द्वारा किया जाता है तथा उसमें किसी अन्य संगठन की भूमिका नहीं होती है।
2. समूह प्रतिरूप
- लोकनीति का निर्माण सरकार द्वारा ही किया जाता है लेकिन उसमें अन्य संगठनों की भूमिका होती है। जैसे – मीडिया, जनमत, दबाव समूह।
3. अ भिजात्य प्रतिरूप
- लोक कल्याण को ध्यान में रखकर नीति बनाने का दावा किया जाता है लेकिन वास्तविकता में उस नीति का लाभ केवल निकटतम लोगों का होता है।
4. अ भिवृद्धिकारी प्रतिरूप
- इसके अनुसार लोकनीति एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है अर्थात् यह एक स्थान पर अथवा एक समय पर नही बनाई जाती है बल्कि उसमें निरन्तर सुधार चलता रहता है।
5. कु ड़ादान प्रतिरूप
- लोकनीति का निर्माण किसी एक व्यक्ति के द्वारा एक समय नहीं किया जाता है। बल्कि समय के साथ उसइमें अनेक लोगों का योगदान रहता है।