राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व
पृष्ठभूमि
- किसी भी स्वतंत्र राष्ट्र के निर्माण में मौलिक अधिकार तथा नीति निर्देश महत्वर्ण भूमिका निभाते हैं। राज्य के नीति निदेशक तत्त्व जनतांत्रिक संवैधानिक विकास के नवीनतम तत्त्व हैं।
- सर्वप्रथम ये आयरलैंड के संविधान में लागू किये गये थे। ये वे तत्त्व है जो संविधान के विकास के साथ ही विकसित हुए है।
संविधान में प्रावधान
- राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों का उल्लेख संविधान के भाग-4 और अनुच्छेद-36 से 51 तक में किया गया है।
- वास्तव में निदेशक तत्त्वों को अनुच्छेद-38 से 51 में वर्णित किया गया है। अनुच्छेद-36 राज्य की परिभाषा को उल्लिखित करता है। अनुच्छेद-37 निदेशक तत्त्व के महत्त्व व प्रकृति को वर्णित करते हैं।
- इन्हें न्यायालय द्वारा लागू नहीं कराया जा सकता है।
नीति निदेशक तत्त्वों के बारे में प्रमुख कथन-
- नसीरूद्दीन:- “नये वर्ष के वह प्रथम दिन के वादे जिन्हें दूसरे दिन भूला दिये जाते है”।
- ग्रेनविल ऑस्टिन:- “नीति निदेशक तत्त्व राज्य की आत्मा है।“
- K.T. शाह:- “नीति निदेशक तत्त्व उस चेक की भाँति है जिसका भुगतान करना बैंक की इच्छा पर छोड़ दिया गया है।“
- डॉ. बी.आर. अम्बेडकर:- “संविधान की अनोखी विशेषता”
- T.T. कृष्णामाचारी:- “नीति निदेशक तत्त्व राज्य की आवश्यकताओं एवं आकाक्षाओं का अस्थाई कचरा पात्र है।“
- के.संथानम:- “नीति निदेशक तत्त्व संघ सरकार व राज्य सरकारों, राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री, राज्यपाल व मुख्यमंत्री का टकराव है“।
- के.सी. व्हिलर:- “नीति निदेशक तत्त्व भावनाओं व उद्देश्यों का घोषणा पत्र है“।
- एम.सी. छागला:- “नीति निदेशक तत्त्वों को गंभीरता से लागू कर दे तो भारत स्वर्ग बनेगा“।
नीति निदेशक तत्त्वों का लक्ष्य
- इनकी स्थापना का मुख्य उद्देश्य भारत में कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना था। संविधान की प्रस्तावना द्वारा भारत के नागरिकों को समानता, स्वतंत्रता एवं न्याय सुलभ कराने का जो संकल्प व्यक्त किया गया है, वह इन आदर्शों को क्रियान्वित किये जाने पर पूर्ण हो सकता है।
- ये वास्तविक रूप से देश में सामाजिक और आर्थिक प्रजातंत्र को स्थापित करते हैं।
नीति निदेशक तत्त्व और संविधान विशेषज्ञ के मत-
- डॉ. भीमराव अम्बेडकर- “राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों को भारतीय संविधान की अनोखी विशेषता कहा है।“
- के.टी. शाह- राज्य के नीति निदेशक सिद्वांत एक ऐसा चैक हैं जो बैंक की सुविधानुसार अदा किया जाता है।
- ठाकुर दास भार्गव- भारतीय संविधान का प्राण तथा सार' कहा है।
- जी. ऑस्टिन- नीति निदेशक तत्त्वों को संविधान की आत्मा' कहा है।
नीति निदेशक सिद्धांतों से संबंधित अनुच्छेद:
अनुच्छेद |
विषय-वस्तु |
36 |
राज्य की परिभाषा |
37 |
इस भाग में समाहित सिद्धांतों को लागू करना |
38 |
राज्य द्वारा जन-कल्याण के लिए सामाजिक व्यवस्था को बढ़ावा देना। |
39 |
राज्य द्वारा अनुसरण किये जाने वाले कुछ नीति-सिद्धांत |
39A |
समान न्याय एवं नि:शुल्क कानूनी सहायता |
40 |
ग्राम पंचायतों का संगठन |
41 |
कुछ मामलों में काम का अधिकार,शिक्षा का अधिकार तथा सार्वजनिक सहायता |
42 |
न्यायोचित एवं मानवीय कार्य दशाओं तथा मातृत्व सहायता के लिए प्रावधान। |
43 |
कर्मचारियों को निर्वाह वेतन आदि। |
43A |
उद्योगों के प्रबंधन में कर्मचारियों को सहभागिता |
43B |
सहकारी समितियों को प्रोत्साहन |
44 |
नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता |
45 |
बालपन-पूर्व देखभाल तथा 6 वर्ष से कम आयु के बच्चों की शिक्षा |
46 |
अनु. जाति, अनु. जनजाति तथा कमजोर वर्गों के शैक्षिक तथा आर्थिक हितों को बढ़ावा देना |
47 |
पोषाहार का स्तर बढ़ाने, जीवन स्तर सुधारने तथा जन-स्वास्थ्य की स्थिति बेहतर करने सम्बन्धी सरकार का कर्तव्य। |
48 |
कृषि एवं पशुपालन का संगठन |
48A |
पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्द्धन तथा वन एवं वन्य जीवों की सुरक्षा |
49 |
स्मारकों तथा राष्ट्रीय महत्त्व के स्थानों एवं वस्तुओं का संरक्षण |
50 |
न्यायपालिका का कार्यपालिका से पृथक्करण |
51 |
अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा को प्रोत्साहन |
बाद में जोड़े गये नीति निदेशक तत्त्व
|
संविधान संशोधन अधिनियम |
जोड़े गए नीति-निदेशक सिद्धांत |
1. |
42वाँ संशोधन अधिनियम-1976 |
1. अनुच्छेद-39(क) जोड़ा गया जिसमें समान न्याय और नि:शुल्क विधिक सहायता का उपबंध किया गया। 2. अनुच्छेद-39(च) जोड़ा गया जिसमें बालकों की शोषण से रक्षा तथा स्वस्थ विकास के अवसरों को सुरक्षित रखने संबंधी प्रावधान जोड़ा गया। 3. अनुच्छेद-43(क) जोड़ा गया जिसके द्वारा उद्योगों के प्रबंध में कर्मकारों का भाग लेना सुनिश्चित किया गया। 4. अनुच्छेद-48(क) जोड़ा गया जिसमें पर्यावरण का संरक्षण तथा संवर्धन और वन तथा वन्य जीवों की रक्षा का कर्तव्य शामिल किया गया। |
2. |
44वाँ संशोधन अधिनियम-1978 |
अनुच्छेद-38(2) जोड़ा गया जिसमें व्यवस्था की गई है, जो राज्य आय, प्रतिष्ठा एवं सुविधाओं के अवसरों में असमानता को समाप्त करेगा। |
3. |
86वाँ संशोधन अधिनियम-2002 |
इस अधिनियम द्वारा अनुच्छेद-45 की विषय-वस्तु को बदल कर राज्य को प्रारंभिक शैशवास्था की देखभाल तथा छ: वर्ष से कम आयु के बालकों की शिक्षा के लिए व्यवस्था करने का निर्देश दिया गया। |
4. |
97वाँ संशोधन अधिनियम-2011 (12 जनवरी, 2012 से प्रभावित) |
अनुच्छेद-43(ख) जोड़ा गया जिसमें कहा गया है कि राज्य, सहकारी समितियों के स्वैच्छिक निर्माण, कार्यों, नियंत्रण व प्रबंधन को बढ़ावा देगा। |
मौलिक अधिकार तथा नीति निदेशक तत्त्वों में अंतर –
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मौलिक अधिकार |
नीति निदेशक तत्त्व |
1. |
मूल अधिकार नकारात्मक स्वरूप लिए हैं। |
निदेशक तत्त्व सकारात्मक हैं। |
2. |
ये राज्य पर कुछ प्रतिबन्ध लगाते हैं। |
ये निश्चित कार्यों को करने का आदेश देते हैं। |
3. |
ये बाध्यकारी हैं। |
ये बाध्यकारी नहीं हैं। |
4. |
ये न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय हैं। |
ये प्रवर्तनीय नहीं हैं। |
5. |
मूल अधिकारों का विषय व्यक्ति है। |
निदेशक तत्त्व राज्य के लिए हैं। |
6. |
ये नागरिकों को संविधान द्वारा प्रत्यक्ष रूप से दिए गए हैं। |
निदेशक तत्त्वों का उपयोग नागरिक तभी कर सकते हैं जब राज्य विधि इन्हें कार्यान्वित करे। |
7. |
मूल अधिकार सार्वभौम नहीं हैं, उन पर कुछ प्रतिबंध हैं। |
निदेशक सिद्धांतों पर कोई प्रतिबंध नहीं है। |
8. |
इनका उद्देश्य लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था की स्थापना करना है। |
इनका उद्देश्य सामाजिक एवं आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना करना है। |