संगम युग

दक्षिण भारत में राज्यों का गठन
संगम की अवधारणा :

- संगम शब्द का अर्थ संघ, परिषद्, गोष्ठी तथा तमिल कवियों का सम्मेलन है। इन परिषदों का संगठन पांड्य राजाओं के संरक्षण में किया गया था। तीन संगम आयोजित हुए।

संगम साहित्य :

- शिल्पदिकारम : इलांगोआदीगल द्वारा रचित यह एक तमिल साहित्य का प्रथम महाकाव्य है, जिसका शाब्दिक अर्थ - नुपूर की कहानी। इस महाकाव्य के नायक और नायिका कोवलन और कन्नगी है।

- मणिमेखलै : मदुरा के बौद्ध व्यापारी सत्तनार द्वारा रचित यह तमिल महाकाव्य है। इसमें कोवलन की दूसरी पत्नीमाधावी तथा उसकी पुत्री मणिमेखलै के चरित्र को दर्शाया गया है।

- जीवक चिन्तामणि : जैन मुनि तिरूतक्कदेवर की कृति है।

- संगम साहित्य से चेर, चोल एवं पांड्य तीन राजवंशों के विषय में जानकारी मिलती है।

चेर एवं चोल :

- केरल पुत्र के नाम से चर्चित चेर राज्य आधुनिक कोंकण, मालाबार का तटीय क्षेत्र, उत्तरी त्रावणकोर एवं कोचीन तक विस्तृत था।

- चेर राज्य का राजकीय चिह्न 'धनुष' था।

- उदियनजेरल चेर राजवंश का प्रथम राजा था। इसकी राजधानी मरन्दै थी।

- शेनगुट्टुवन चेरों का सबसे महान शासक था। इसे 'लालचेर' भी कहा जाता था। शेनगुट्टुवन ने 'कण्णागी पूजा' (पत्नी पूजा) प्रारम्भ किया। इसने अधिराज की उपाधि धारण की।

- चेर शासक शेय को हाथी जैसा आँखों वाला कहा जाता है।

- चोल राज्य आधुनिक उत्तर तमिलनाडु तथा दक्षिणी आन्ध्र प्रदेश तक विस्तृत था।

संगम का आयोजन

प्रथम संगम :

स्थान

मदुरा

अध्यक्ष

ऋषि अगस्त्य

संरक्षक

89 पांड्य शासक

अवधि

4,400 वर्ष

सदस्य

549

प्रस्तुत रचनाएँ

4499

मानक ग्रंथ

अक्कतियम, परिपदल,

मुदुनरै (परिपादल - मुदनारै)

उपलब्ध ग्रन्थ

कोई नहीं

द्वितीय संगम :

स्थान

कपाटपुरम्

अध्यक्ष

तोल्लकापिप्यर

संरक्षक

59 पांड्य शासक

अवधि

3,700 वर्ष

सदस्य

49

प्रस्तुत रचनाएँ

3,700

मानक ग्रंथ

तोल्लकाप्पियम, मापुरानम्,

भूतपुरोनम, कलि, कुरूक,

वेन्दालि, व्यालमलय

उपलब्ध ग्रन्थ

तोल्लकाप्पियर कृत

'तोल्लकाप्पियम' जो तमिल

भाषा का प्राचीनतम व्याकरण है

तृतीय संगम :

स्थान

मदुरा

अध्यक्ष

नक्कीरर

संरक्षक

49 पांड्य शासक

अवधि

1850 वर्ष

सदस्य

49

प्रस्तुत रचनाएँ

449

मानक ग्रंथ

पत्थुप्पस्तु, एतुत्थोकई, पादिने

नकील कनवकु, नेडुण्थोकै,

कुरून्थोकै, परिपादल, वरि,

वेरिसै, एन्कुरून्नूरू

उपलब्ध ग्रन्थ

पत्थुप्पस्तु, एतुत्थोकई,

पादिने नकील कनवकु

तथा अन्य समस्त

उपलब्ध तमिल ग्रंथ।

- चोलों की राजधानी पहले उरैयूर तथा बाद में पुहार (कावेरी पट्नम) थी।

- चोलों का राजकीय चिह्न बाघ था।

- करिकाल चोलों का सर्वाधिक महत्वपूर्ण शासक था जिसका अर्थ होता है 'जले हुए पैर वाला व्यक्ति'।

- करिकाल के पास एक शक्तिशाली नौसेना थी जिसका उपयोग उसने श्रीलंका पर विजय प्राप्त करने के लिए किया।

पांड्य :

- पांड्य राज्य का सर्वप्रथम उल्लेख पाणिनि की अष्टध्यायी में मिलता है। मेगस्थनीज ने भी कहा है कि इस राज्य पर एक औरत का शासन था।

- पांड्य राज्य की राजधानी मदुरै थी तथा इसका राजचिह्न मछली (मत्स्य) था।

- पांड्य राज्य मदुरै, रामनाथपुरम, तिरूनेलवेलि, तिरूचिरापल्ली एवं ट्रावनकोर तक विस्तृत था।

- नेडियोन पांड्य राजवंश का प्रथम शासक था। नेडियोन का शाब्दिक अर्थ 'लम्बा आदमी' होता है। इसने समुद्र की पूजा प्रारम्भ कराई थी।

- नेडियोन के पश्चात् मुदुकुडुमी शासक बना। इसने 'पालशालै' (यज्ञशालाएँ बनवाने वाला) की उपाधि धारण की।

शासन व्यवस्था :

- संगमकालीन शासन व्यवस्था में वंशानुगत राजतंत्र की प्रथा प्रचलित थी।

- राजा अपनी सभा 'नालवै' में प्रजा की कठिनाइयों पर विचार करता था।

- 'मनरम' सर्वोच्च न्यायालय होता था जिसका सर्वोच्च न्यायाधीश राजा होता था।

- राजा के आवास पर सशत्र महिलाएँ रक्षक के रूप में रहती थीं।

- सेना के कप्तान की उपाधि 'एनाडी' थी। युद्ध में मृत सैनिकों की पत्थर की मूर्तियाँ बनाई जाती थी।

आर्थिक स्थिति :

- तमिल प्रदेश अपनी उर्वरता के लिए प्रसिद्ध था। कावेरी डेल्टा बहुत उपजाऊ था। कृषि आर्थिक व्यवस्था का मुख्य आधार थी। यहाँ धान, रागी तथा गन्ने की खेती होती थी। इसके अतिरिक्त अन्य अनाज, फल, गोलमिर्च और हल्दी की पैदावार होती थी।

- 'अरिकामेडु' एक प्रसिद्ध व्यापारिक केन्द्र था जहाँ से वस्तुएँ भारत के विभिन्न भागों में भेजी जाती थीं।

- तमिल प्रदेश में गोलमिर्च का अत्यधिक उत्पादन होता था जिसे 'यवनप्रिय' कहा गया है।

- पुहार चोल का, शालियूर पांड्य का तथा बंदर चेर राज्य का महत्वपूर्ण बंदरगाह था। अवनम संगम काल में बाजार को कहते थे।

- उरैयूर सूती कपड़ों के व्यापार के लिए प्रसिद्ध था।

- संगमकाल में सर्वाधिक व्यापार रोमन राज्य के साथ था।

धर्म :

- संगमकाल में वैदिक व ब्राह्मण धर्म का सर्वाधिक प्रचलन था। तमिल क्षेत्र में मुरुगन, शिव, बलराम, कृष्ण, मरियम्मा (परशुराम की माता), येलम्मा (सीमा की देवी) आदि की उपासना की जाती थी।

- मुरुगन तमिलों का सर्वश्रेष्ठ देवता था। मुरुगन की पूजा काफी प्राचीन थी। इनके सम्मान में वेलनाडल उल्लासमय नृत्य किया जाता था।

- मुरुगन को सुब्रह्मण्यम भी कहा जाता था तथा इसका एकीकरण स्कंद कार्तिकेय के साथ किया गया। मुरुगन का प्रतीक कुक्कुट (मुर्गा) था।

- पुहार के वार्षिक उत्सव में इन्द्र की पूजा होती थी।

- संगम काल में लोगों को कर्म, पुनर्जन्म तथा भाग्य पर विश्वास था।